सही चीज़ों का चुनाव
कुछ महीनों पहले मैंने एक कविता लिखी: "प्यार की लहर"। कविता का भाव था कि जीवन के समुंदर में प्रेम एक लहर जैसा है जो कभी भी उठ जाती है, और कभी भी गिर जाती है; यह हमें किस दिशा में ले जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रेम में इतनी अनिश्चितता है। फिर भी इस अनिश्चितता का अपना एक अलग आनंद है। यह कविता हमारी वेबसाइट (www.kavyafoundation.in) में प्रकाशित की गई। वहां से एक सदस्य ने यह अपने किसी मित्र से साझा की। मित्र ने कविता पढ़कर कहा, "हम्म"। तो मुझे लगा कि दुनिया में अधिकतर लोग ऐसे हैं कि यदि आप कहो कि आप को बुद्धत्व प्राप्त हो गया है, तो बोलेंगे, "हम्म"। यदि आप कहो कि सालों की सघन साधना के बाद आप अपनी प्रेमिका से मिल गए हैं, तो बोलेंगे, "हम्म"। लेकिन यदि आप कहो कि आज आपने किसी बड़े खिलाड़ी या अभिनेता के साथ सेल्फी ली, तो बोलेंगे, "Wow, man, you nailed it. तुस्सी त शा गए, पाजी!"

दुनिया किस प्रकार की उपलब्धि पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देगी, इसके आधार पर हम यह चुनाव कर लेते हैं कि हमें किस प्रकार की चीज़ें उपलब्ध करनी चाहिए अपने जीवन में। उन चीज़ों से हमें कोई सुख मिले न मिले, लेकिन लोकदृष्टि में उनका मूल्य होना चाहिए।

यानी, जहां "हम्म्" मिल रहा है वो ग़ैरज़रूरी हैं। और जहां "wow" मिल रहा है वो ज़रूरी हैं।

कहीं आप भी wows के चक्कर में ग़लत चुनाव तो नहीं कर रहे हैं?