ऐरो (Arrow): एक चीनी मित्र (या शत्रु?)
पिछले साल इशा आश्रम (कोयंबटूर) में एक चीनी नवयुवक से मुलाक़ात हुई, नाम था ऐरो । 19 साल का एक सौम्य, हंसमुख, जोशीला, और विचारशील लड़का । मैंने पूछा, "ईशा किस लिए आए हो?" तो बोला, "12वीं पास करने के बाद किस विषय में स्नातक की पढ़ाई करूं इसको लेकर असमंजस में हूं । उसी प्रश्न का उत्तर ढूंढने यहां आया हूं।" एक साल में ऐरो दो तीन बार ईशा आ चुका था, उत्तर की तलाश में । उसकी कहानी से मैं बड़ा प्रभावित हुआ, और कई सारे बच्चों को उसकी कहानी सुनाई उन्हें यह याद दिलाने के लिए कि पढ़ाई के लिए सही क्षेत्र का चुनाव एक गंभीर विषय है जिसे बड़ी सावधानी और एकाग्रता से समझना चाहिए ।

अब, भारत-चीन के वर्तमान तनाव को देखते हुए यह सोच रहा हूं कि कहीं ऐरो की कहानी दूसरों को सुनाना देशद्रोह तो नहीं । ऐरो अब मेरा मित्र है या शत्रु? दिल तो कहता है कि मित्र है क्योंकि उससे एक आत्मीय संबंध बना है, वह भी साधक, मैं भी साधक । लेकिन राष्ट्रवाद की संकीर्ण, अंधी, और विक्षिप्त परिभाषा के अनुसार वह शत्रु ही है ।

मुझे मित्र/शत्रु जैसा कोई असमंजस नहीं है: शुक्र है, ध्यान ने विचारधाराओं के खोखलेपन और ख़तरों को उजागर कर दिया । विचारधारा चाहे राष्ट्रवाद हो या आध्यात्मवाद, वामपंथ हो या दक्षिणपंथ; विचारधारा विचारधारा ही होती है, और हर विचारधारा अंधी ही होती है । और एक अंधा कभी मित्र और शत्रु का भेद स्वयं नहीं जान सकता।