"करुणा प्रेम का शुद्धतम रूप है," (ओशो)। प्रेम जब अपने पूरे माधुर्य और सौंदर्य में खिलता है, निखरता है; तो करुणा बन जाता है। एक कोमल, हल्का भाव जिसमें अपने अंदर सब कुछ समेट लेने की, स्वीकार कर लेने की अनंत क्षमता होती है। करुणा और दया में अंतर है: दया में दया करने वाला अपने आप को उत्कृष्ट और याचक को निकृष्ट मानता है, करुणा में समानता का भाव होता है। और जहां समानता हो, वहां स्वीकार सहज ही हो जाता है।